DISCLAIMER
the mind is impressionable, heart is impressionistic and words are intended to create an impression

Wednesday, May 19, 2010

हममे कुछ नया नहीं



और ना ही हो सकता है
उस आदम से
इस मानुस तक
हमने यही किया है
और ताज्जुब है
हरबार सोचा की
कुछ नया किया है
फिर एक दिन
उस सच से
होता है साक्षात्कार
की ये तो नया
है ही नहीं
और तब होती है
जंग शुरू,
सच बनाम विश्वास.
उस संकट में
काम आते है
बड़े बड़े नाम
बताइए एइन्स्तिएन
ने नया नहीं किया?
बताइए जो पहले
चाँद पे गया, क्या
उसने भी नया नहीं किया.
पर सच
जवाब नहीं देता
सच तो बस
होता है
आप खुद ही
वितर्क खोजते हैं
जो खोजते है तो
तर्क को भी
आस पास ही पाते हैं
अंततः अपनी जिरह में
आप हरा देते हैं
खुद को
और वो सच
भाग निकलता है
छुपता फिरता है
सालों तक
तर्कों की पुलिस से
फिर होता है प्रदर्पित
जब आप किसी
चोटी पे खड़े
कर रहे होते है
सीना चौड़ा
और दोहराता है
वही सालों पुरानी बात
'इसमें नया क्या है'?

कैसा हो अगर
खो जाये
हम सबकी याददाश्त?
हर किताब जल जाये
हर अक्षर मिट जाये?
तब सब नया लगेगा
शायद.
इसीलिए मैं
मंदबुद्धि होना चाहती हूँ
सब हो चूका है
इस निष्कर्ष को
खोना चाहती हूँ.

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