एक दुनिया है हमारी
नहीं यूटोपिया नहीं
क्योंकि साक्षात है
रियल है
कई बीघा तक
ज़मीन का फैलाव
खेत, खलिहान
पर्वत, झरना
बादल, सूरज, चाँद
हमारी दुनिया में लेकिन
कोई रास्ता नहीं
पगडण्डी नहीं
किसी वाक्य कि
मात्र कि, नुख्ते कि
लेकिन हम वहां
खो नहीं सकते
जब पथ नहीं
तो भ्रष्ट भी हो नहीं सकते
हम वहीं पर मिलते हैं
बरसातों में
भीगते हैं संग हमारे
शब्द भाव
बह जाते हैं
समां जाते हैं
कहीं दलदल, कीचड़ नहीं करते
यह दुनिया सच्ची है
कसम से!
मन करता है
सबको बुलाॐ
इसमें भागीदार बनाॐ
लेकिन मेरी ये अदभुत
दुनिया
सार्वजनिक नहीं.
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